दुर्लभ संयोग में मनेगी इस बार की महाशिवरात्रि, 60 साल बाद आया है ऐसा मौका

07 FEB 2020
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विशेष लेख : पंडित मार्कण्डेय दूबे 

महामृत्युंजय भगवान् शिव की उपासना का पर्व यानि कि महाशिवरात्रि इसबार वर्ष 2020 में  21 फरवरी शुक्रवार को पूरे देश में तथा विदेशों में रहने वाले भारतीय और सनातन धर्मावलंबियों के द्वारा मनाई. काशी के सभी पंचांग ऋषिकेश, महावीर और अन्नपूर्णा के अनुसार सूर्योदय त्रयोदशी तिथि में हो रहा है. और त्रयोदशी सूर्यास्त से पहले 5:12 तक रहेगी. इसके बाद चतुर्दशी तिथि का प्रवेश हो रहा है. जो दूसरे दिन 22 फरवरी 2020 शनिवार को संध्या 6:10 तक रहेगी. शिवरात्रियों की कुल संख्या 24 होती है. 12 कृष्ण पक्ष में पड़ती हैं और 12 शुक्ल पक्ष में पड़ती हैं लेकिन 24 शिवरात्रि में फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है. इसका का अर्थ महा अर्थात बड़ा, शिव मतलब कल्याण, रात्रि मतलब रात्रि अर्थात कल्याण की सबसे बड़ी रात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है.                                                                                                                                             

दुर्लभ संयोग 

1962 के बाद लगभग छह दशकों के बाद ऐसा संयोग बन रहा है. जब शनिदेव अपनी राशि मकर मे चंद्रमा भी पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र के बाद श्रवण नक्षत्र के अंतर्गत मकर राशि में शनि देव के साथ होंगे. प्रातः काल 9:07 से 10:45 तक मेष लग्न के दशम भाव में चंद्रमा और शनि का योग बना रहा है. इस समय दो बड़े योग बन रहे हैं. मेष लग्न मे दशम और चंद्र लग्न में प्रथम भाव में शश नामक राजयोग बन रहा है. इस मुहूर्त में किया गया पूजा-पाठ अतिशय फलदाई होता है.                                                                                       


धार्मिक मान्यता                

                                                                                                     

हिन्दू ग्रंथों और मान्यताओं के आधार पर शिवरात्रि तभी मनाई जाती है जब रात्रि में चतुर्दशी तिथि का भोग हो. ऐसा ही संयोग इस वर्ष है, कि 21 फरवरी के संध्या 5:12 से लेकर पूरी रात चतुर्दशी तिथि का भोग है. 21 फरवरी  2020 को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी.   


ज्योतिषीय मत      

                   

कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि तक चंद्रमा निर्बल और अस्त प्राय हो जाते हैं. साथ ही चंद्रमा का शनि के साथ संयोग विष योग बनाता है. जो जीवन को कष्टदायक बनाता है. चंद्रमा से संबंधित परेशानियों और शनि से संबंधित कष्टों के निवारण के लिए भगवान शिव का जल और बेलपत्र से पूजन करना  फलदायक होता है. जबकि इस दिन रुद्राभिषेक, महा रुद्राभिषेक, मंत्रों का जप, साधना इत्यादि करना बिना शिववास के रुद्राभिषेक किया भी जाता है. क्योंकि कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी में शिववास नहीं मिलता है. फिर भी भगवान शिव के विवाह की रात्रि होने के चलते इस दिन का किया गया अभिषेक हजारों गुना अधिक प्रभावी हो जाता है. इस व्रत को महिला, पुरुष, बच्चे, कुंवारी कन्याएं सभी कर सकते हैं. कुंवारी कन्याएं अपने भावी सुयोग्य पति की प्राप्ति तथा महिलाएं अपने पति की आयु वृद्धि के लिए और सन्तान की उन्नति के लिए करती है. भगवान शिव औढरदानी है. महाशिवरात्रि के दिन इनसे जो याचना की जाती वो निश्चित रूप से पूर्ण होती है. 


 


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