पंडित- मारकंडेय दुबे
बोकारो/धनबाद-शारदीय नवरात्रि वर्ष 2020 और नवरात्रि में दुर्गा पूजन की वििधि।इस वर्ष नवरात्रि का आरंभ 17 अक्टूबर 2020 शनि वार से और नवमी एवं दशमी तिथि सहित नवरात्रि की समाप्ति 25 अक्टूबर 2020 रविवार को हो जाएगा l विजय दशमी भी 25 अक्टूबर को ही है।केवल पंडालों से मूर्ति विसर्जन 26 अक्टूबर को होगा l क्योंकि रविवार को मूर्ति विसर्जन नहीं करनी चाहिए
कलश स्थापन :-कलश स्थापन 17 अक्टूबर 2020 शनि वार को दिन के 11.36 से 12.24 तक अभिजीत मुहूर्त में किया जाएगा l क्योंकि चित्र नक्षत्र और विषकुम्भ योग दोनों ही कलश स्थापन में और देवी पूजन में ग्राह्य नहीं है।
शारदीय नवरात्रि के आगमन के साथ-साथ प्रत्येक घर में दुर्गा पूजा की तैयारी होने लगती है l हिन्दू और जो लोग सनातन धर्म का पालन करते हैं l उनके घरों में कलश स्थापन, दुर्गा पाठ, उपवास, व्रत आदि की व्यवस्था शुरू होने लगती है।
नवरात्रि में कुछ लोग दुर्गा पाठ पुरोहित( ब्राह्मण), पंडित से करवाते हैं तो कुछ लोग स्वयं करते हैं l स्वयं से पाठ कर लेना बहुत उत्तम होता है l यदि करने में सक्षम हैं l अब बात आती है l व्रत, उपवास और कलश स्थापन, की बारी आती है l
कलश स्थापन विधि :- कलश स्थापन के लिए सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा के कक्ष में अथवा अपने मकान के ईशान कोण वाले कक्ष में भी ईशान कोण में कलश स्थापन की व्यवस्था करें l किंतु कलश स्थापन के पूर्व उस कमरे की सफाई और धुलाई जरूर करें l इसके बाद जब कलश स्थापन करनी हो तो नीचे मिट्टी अथवा बालू रखकर उसके ऊपर सप्तधान्य अथवा जौ का उपयोग करें l
जौ के ऊपर कलश को रख कलश में जल अथवा गंगाजल डालकर उसमें हल्दी चूर्ण , दूर्वा, कुश की पवित्री, सुपारी और द्रव्य, पंचरत्न, सर्व औषधी और सप्तमृत्तिका भी मिलाएँ l तत्पश्चात आम का पल्लव या पंचपल्लव देकर उसके ऊपर चावल से भरकर एक पूर्ण पात्र भी स्थापित करें l पूर्ण पात्र में चावल पर रोरी, अबीर अथवा हल्दी चूर्ण से स्वास्तिक या अष्टदल कमल बनाने के बाद उसके ऊपर लाल रंग के कपड़े में बाँध कर गड़ी गोला अथवा नारियल स्थापित करें l
कलश में भी लाल वस्त्र लपेटना अनिवार्य होता है l इसके बाद संकल्प लें कर सर्वप्रथम गणेश गौरी की पूजा तत्पश्चात कलश स्थापित कर मां दुर्गा के मंत्र जप अथवा पाठ करें l
लोग अपने अपने घर में नवरात्रि के दौरान कलश स्थापन कर मां दुर्गा की पूजा - अर्चना करते या करते हैं l स्वयं या ब्राह्मण से पाठ भी कराते हैं l परंतु देखा गया है l कि एक ही पाठ में अर्थात दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय को ही 9 भागों में विभाजित कर 9 दिन के अंदर किया जाता है l
एक ही पाठ में 9 दिन पाठ करना l यह बात बिल्कुल ही शास्त्र सम्मत नहीं है l दुर्गा सप्तशती में ही लिखा है l कि आधे चरित्र का पाठ नहीं करना चाहिए l एक पाठ में 9 भाग करके पाठ करने से एक ही पाठ का फल प्राप्त होता है l
दुर्गा सप्तशती का प्रत्येक पाठ नियमानुसार होना चाहिए l दुर्गा पाठ षडंग होता है l केवल 13 अध्याय ही नहीं इसके साथ - साथ कवच, अर्गला और कीलक स्त्रोत प्रारंभ में तथा अंत में तीनों रहस्य - प्रधानिक, वैकृतिक और मूर्ति रहस्य का पाठ करना अनिवार्य होता है l साथ ही रात्रि सूक्त और देवी सूक्त का भी पाठ करना अनिवार्य होता है l कुंजिका स्त्रोत को तो दुर्गा पाठ में सबसे अधिक महत्व दिया गया है l
दुर्गा सप्तशती में उल्लेख है l की कुंजिका स्त्रोत के पाठ किए बिना किया गया दुर्गा पाठ जंगल में रोने के समान होता है l इस स्त्रोत के पाठ के बिना दुर्गा पाठ फलदायक नहीं होता है l
अब विचारणीय तथ्य है l कि क्या 13 अध्याय 9 दिनों में पूरा करना शास्त्र सम्मत है ? अगर इस प्रकार से पाठ नहीं कर सकते हैं l तो दूसरा और सरल साधना का उपाय बीज मंत्र का जप होगा l
इसलिए सबसे उत्तम होगा की देवी के बीज मंत्र
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै वीचै"
दुर्गा जी के बीज मंत्र का जप प्रतिदिन 108 या 1008 अथवा यथा शक्ति जप किया जाए l या पूरी नवरात्रि में 1000 या 10000 जप और उसी का दशांश हवन, तर्पण, मार्जन और दशांश ब्राह्मण भोजन कराया जाए l तो सर्वोत्तम होगा l
पूजन कैसे करें :-पूजन में नवरात्रि के प्रथम दिन स्नान आदि से निवृत होकर नए वस्त्र, नया यज्ञोपवीत धारण करना l तत्पश्चात संकल्प लेकर प्रथम गणेश गौरी की पूजा, कलश स्थापन, नवग्रह पूजन, सर्वतो भद्र स्थापन, मातृका वेदी स्थापन और पूजन के बाद काठ के आसन पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर दुर्गा सप्तशती की पुस्तक रखकर पुस्तक का पूजन करना l और उसके बाद पाठ आरंभ करना।
दोनों समय प्रातः काल और संध्या काल में पूजन के बाद आरती करना अनिवार्य होता है l पाठ के दोनों तरफ बीज मंत्र का 108-108 जप आवश्यक होता है।
हवन सामग्री :-पाठ पूर्ण होने पर नवरात्रि के अंतिम दिनों में हवन की बारी आती है l हवन में भी गलत चीजों का उपयोग पूजा से प्राप्त होने वाले फलों का नाश कर देते हैं l जबकि अधिकतर देखा गया है l कि लोग खूब धूमधाम से खर्च कर पाठ करते या कराते हैं l किंतु हवन में देवदार की लकड़ी को साकल में मिलाकर हवन करते हैं।
शुद्ध देसी घी के जगह पर सस्ती वाली भी का उपयोग करते हैं l अब प्रश्न उठता है कि इसमें दोषी कौन होगा?
यजमान या पुरोहित /आचार्य तो आचार्य दोषी कब होंगे? जब उनका यह परामर्श होगा की देवदार की लकड़ी हवन सामग्री में मिलाया जाए l
यजमान दोषी तब होगे जब वह कम खर्च करने के लिए देवदार की लकड़ी और नकली घी का प्रयोग करते हैं l
हवन के संदर्भ में :-हवन के संदर्भ में शास्त्रीय मत है l की तीर, चावल, जौ, गुड l इनका मिश्रण क्रमशः तील का आधा चावल, चावल का आधा जौ और जौ का आधा गुड़ और तिल के चौथाई भाग घी का उपयोग होना चाहिए l
इसके साथ मेवा मिश्रित शक्ल से हवन करना चाहिए l इसमें कहीं भी देवदार की लकड़ी या किसी भी प्रकार के लकड़ी की शास्त्रीय चर्चा नहीं है l
भगवती को उत्तम से उत्तम सामग्री भोजन के लिए भोग में तथा हवन में भी समर्पित करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है l हवन के बाद हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण भोजन शास्त्रीय परंपरा है आदेश है l
जो लोग इसके विपरीत कार्य करते हैं l उनके पाठ अथवा पूजा का फल उन्हें संपूर्ण रूप में प्राप्त नहीं होता है lअत: शास्त्र के सम्मत पूजा - पाठ, हवन करने से यथोचित फल की प्राप्ति होता हैं।