कलम से- पंडित मारकंडे दुबे
झारखंड/धनबाद-श्रावण का महीना 14 जुलाई से आरंभ हो कर 12 अगस्त तक रहेगा ईन 30 दिनों में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है l क्योंकि यह माह भगवान शिव को अति प्रिय है l
भगवान शिव की पूजा अर्चना और मनोकामना की पूर्ति के लिए श्रावण का महीना बहुत ही शुभ माना जाता है l इस वर्ष श्रावण माह का आरंभ 14 जुलाई गुरुवार से हो रहा है और समाप्ति 12 अगस्त शुक्रवार के दिन होगी l
श्रावण मास में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना का विशेष महत्व होता है l
हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण का महीना वर्ष का पांचवां महीना होता है l इस महीने के पहले ही आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु चार महीनों के लिए क्षीर सागर में माता लक्ष्मी के साथ योगनिद्रा में चले जाते हैं l इस परिस्थिति में सृष्टि की सारी जिम्मेदारी भगवान शिव के कंधों पर होती है l
श्रावण के महीने में प्रत्येक सोमवार व्रत का विशेष महत्व होता है l श्रावण सोमवार में शिवलिंग का नियमित रूप से जल से अभिषेक बिल्वपत्र अर्पण और भोलेनाथ की पूजा करने पर शुभ फल की प्राप्ति होती है l श्रावण महीने में कांवड़ यात्राएं निकाली जाती है जिसमें पवित्र नदियों से जल लेकर प्रसिद्ध ज्योर्तिलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है l
श्रावण मास में शिव भक्त ज्योर्तिलिंग के दर्शन और पूजा-पाठ करते हैं l
श्रावण महीने का महत्व और पूजा पाठ की विधि :-
श्रावण महीने में भगवान शिव को गंगाजल, गाय का दूध, दधि, घी, मधु, गुड़, पंचामृत, ऋतु फल, बेलपत्र,भांग, धतूरा आदि पदार्थों को अर्पित किया जाता है l
श्रावण मास में शुभ योग और 4 सोमवार की अंग्रेजी तिथियां :-
श्रावण का महीना सनातन धर्म में बहुत ही पवित्र और शुभ माना जाता है l श्रावण के महीने में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा की जाती है l श्रावण का महीना पूरे 30 दिन भगवान शिव की भक्ति और आराधना के लिए समर्पित होता है l
श्रावण के महीने में शिव जी शीघ्र प्रसन्न होकर भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं l
इस वर्ष श्रावण के महीने में 4 सोमवार पड़ रहे हैं l श्रावण मास के 30 दिनों में 13 दिन विशेष योगों से युक्त है l
महीने का आरंभ काशी के पंचांग के अनुसार वैधृति योग में हो रही है l और समापन सौभाग्य योग में हो रहा है l
श्रावण मास के 13 विशेष योग निम्न लिखित है l
1. सर्वार्थ सिद्धि योग 15 जुलाई शुक्रवार को रात 8:55 तक l
2. सिद्ध योग शनिवार और रिक्ता तिथि के संयोग से 16 जुलाई शनिवार को दिन के 5:13 के बाद l
3. बुधवार और भद्रा तिथि के संयोग से 20 जुलाई को दिन में 12:9 तक l
4. सर्वार्थ सिद्धि योग 21 जुलाई गुरुवार को संध्या 6:38 तक l
5. सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग 23 जुलाई को रात्री 9:32 के बाद l
6. सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग 25 जुलाई को रात्री 2:4 तक l
7. भौमवार और जया तिथि के संयोग से भौम जया सिद्ध योग 26 जुलाई को संध्या 6:17 तक l
8. सर्वार्थ सिद्धि योग दिन में 7:17 तक तत्पश्चात गुरु पुष्य अमृत सिद्धि योग 28 जुलाई को पूरे दिन l
9. सर्वार्थ सिद्धि योग दिन में 4:5 तक l
बुधवार और भद्रा तिथि के संयोग से बुध भद्रा सिद्ध योग रात 1:47 के बाद 3 अगस्त को l
10. सिद्ध योग शनिवार और रिक्ता तिथि के संयोग से शनि रिक्ता सिद्ध योग 6 अगस्त को रात 9:20 तक l
11. भौम ( मंगल वार) वार और जया तिथि के संयोग से भौम जया सिद्ध योग 9 अगस्त को दिन में 2:30 के बाद से l
( XXll ) गुरुवार और पूर्णा तिथि के संयोग से गुरु पूर्णा सिद्ध योग 11 अगस्त को दिन में 9:35 के बाद l
( XXlll ) शुक्रवार और नंदा तिथि के संयोग से शुक्र नंदा सिद्ध योग 12 अगस्त को प्रातः 7:16 के बाद l
श्रावण मास 2022 में सोमवार की अंग्रेज़ी की तिथियां इस प्रकार से हैं l
पहला सोमवार- 18 जुलाई को l
दूसरा सोमवार- 25 जुलाई को l
तीसरा सोमवार- 01 अगस्त को l
चौथा सोमवार- 08 अगस्त को l
श्रावण महीने में भगवान शिव को गंगाजल, दूध, दधि, घृत, मधु, गुड़, पंचामृत, बेलपत्र,भांग, धतूरा आदि पदार्थों को अर्पित किया जाता है l
ज्योतिष के अनुसार श्रावण मास का महत्व :-
श्रावण मास पूजा-पाठ और ध्यान के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया है l
ज्योतिष में भी श्रावण महीने का विशेष महत्व होता है l श्रावण मास में सूर्य कर्क राशि में गोचर करते है l सूर्य का गोचर 12 राशियों को प्रभावित करता है l
श्रावण मास में क्यों होती है भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा ?
श्रावण माह में की जाने वाली भगवान शिव की पूजा शीघ्र शुभ फलदायी होती है l ऐसा शिव जी का वरदान है l श्रावण का महीना भगवान शिव को बहुत प्रिय है l
भगवान शिव की पूजा की पौराणिक कथाएं :-
( 1 ) माँ पार्वती जी की तपस्या से श्रावण मास में ही भगवान भोले नाथ ने माँ पार्वती को अपनी पत्नी माना था इसलिए भगवान शिव को श्रावण महीना बहुत ही अधिक प्रिय है l
( 2 ) श्रावण मास में समुद्र मंथन भी हुआ था l जिस
समुद्र मंथन से निकले हुए विष को न देव और न दानव ग्रहण करना चाहते थे तब भगवान शिव ने ही लोक कल्याण के लिए इस विष का पान कर लिया और उसे अपने गले में रोक लिया l जिसके चलते उनका कंठ नीला पड़ गया l तब से इन्हें नीलकण्ठ कहा जाने लगा l विष के प्रभाव से भगवान शिव का ताप बढ़ने लगा तब सभी देवी-देवताओं ने विष का प्रभाव कम करने के लिए भगवान शिव को जल अर्पित किया l उन्हें सुकून मिला l इससे भगवान शिव प्रसन्न हुए l उसी दिन से प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में भगवान शिव को जल अर्पित तथा जलाभिषेक करने की परंपरा आ रही है l
( 3 ) भगवान श्रीराम ने भी किया अभिषेक :-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण मास में भगवान श्री राम ने भी सुल्तानगंज से गंगाजल लिया और देवघर स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था l तभी से श्रावण मास में शिव जी का जलाभिषेक करने की परंपरा जुड़ गई l
श्रावण मास में भगवान शिव को कैसे प्रसन्न करें :-
(A) श्रावण मास में किसी भी सोमवार को जल में गाय का दूध व काले तिल डालकर अभिषेक करें l
( B ) श्रावण मास में प्रतिदिन 11, 21, 51, 108, 1008 बिल्वपत्रों पर सफेद चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं , इससे आपकी सभी मनोकामनाएं भोलेनाथ पूर्ण करेंगे l
( C ) यदि विवाह में बाधा आ रही है तो श्रावण मास में प्रति दिन शिवलिंग पर केसर मिला हुआ दूध चढ़ाएं l इससे शीघ्र ही विवाह के योग प्राप्त हो सकते हैं l
(D) श्रावण मास में नंदी (बैल) को हरा चारा प्रति दिन खिलाने से कष्टों का निवारण होता है l जीवन में सुख-समृद्धि और मन प्रसन्न रहता है l
( E ) श्रावण मास में प्रति दिन गरीबों को भोजन कराने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती है तथा पितरों की आत्मा को भी शांति मिलती है l
( F ) श्रावण मास में प्रातः उठकर स्नान के बाद शिव मंदिर में जा कर भगवान शिव का जल से अभिषेक करने और उन्हें काले तिल अर्पण करने के बाद मंदिर में बैठकर मन में ऊं नम: शिवाय मंत्र का जप करने से पूरे परिवार का कल्याण होता है l
( G ) घर में किसी प्रकार की परेशानी हो तो श्रावण मास सुबह में घर में गोमूत्र का छिड़काव करने तथा गुग्गुल का धूप देने से घर की सभी परेशानी दूर हो सकती है l
श्रावण मास में भगवान शिव के अभिषेक के लाभ :-
शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव का किन पदार्थों से अभिषेक करने का क्या फल होता है इसे बताया गया है l
1. गन्ने के रस से अभिषेक-
धन प्राप्ति और सभी प्रकार के सुख के लिए l
2. शहद से अभिषेक- यक्ष से मुक्ति, कर्जमुक्ति एवं धन तथा पति का सुख और पापों से मुक्ति के लिए l
3. दधि से अभिषेक-पशुधन की वृद्धि के लिए l
4. कुशोदक से अभिषेक-
व्याधि शांति आरोग्य की प्राप्ति के लिए l
5. मिश्री एवं दूध से अभिषेक- जड़त्व से मुक्ति और उत्तम विद्या की प्राप्ति के लिए l
6. दूध से अभिषेक-
पुत्र सुख की प्राप्ति बांझपन से मुक्ति और जीवन में सुख की प्राप्ति के लिए l
7. गाय के घी द्वारा रुद्राभिषेक करने पर वंश विस्तार और सर्वकामना पूर्ण होती है l
8. सरसो के तेल से अभिषेक - शत्रु के शांति के लिए l
9. सरसो से अभिषेक - व्याधि से मुक्ति के लिए l
10. तीर्थों के जल से अभिषेक - मुक्ति के लिए l
11. जल से अभिषेक - वृष्टि के लिए, ज्वर से मुक्ति तथा प्रमेह रोग से मुक्ति के लिए l
भगवान शिव को भस्म, लाल चंदन,रुद्राक्ष, आक का फूल, धतूरे का फल, बिल्व पत्र और भांग विशेष रूप से प्रिय है l अतः इन्ही पदार्थों से श्रावण मास में भगवान शिव का पूजन करना चाहिए l
श्रावण माह में इन फूलों और पदार्थों को शिवलिंग पर अवश्य ही अर्पित करना चाहिए l
कमल पुष्प, बिल्वपत्र शंखपुष्प, दूर्वा,हरसिंगार, दुपहरिया,कनेर, बेला,चमेली, अलसी,शमीपत्र, मदार,धतूरा ,जूही,सेदुआर और ,राई l
श्रावण मास के पूजा में भगवान शिव की आराधना में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए l
1. भगवान शिव को कभी भी केतकी के फूल नहीं चढ़ाना चाहिए l ऐसी पौराणिक मान्यता है कि केतकी के फूल चढ़ाने से भगवान शिव नाराज होते हैं l
2. भगवान शिव की पूजा में उन्हें तुलसी दल या तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए l
3. भगवान शिव पर नारियल का पानी भी नहीं चढ़ाना चाहिए l
4. भगवान शिव को जलाभिषेक किसी कांसे या पीतल के बर्तन से ही करनी चाहिए l
5. शिवलिंग पर कुमकुम नहीं लगाना चाहिए l
अद्भूत चमत्कारी है महामृत्युंजय मंत्र :-
ॐ हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुवः स्वरों
जूं स : हौं ॐ !!
शिव एकादशाक्षरी मंत्र :-
ओम नम: शिवाय शिवाय नम:।
शिव स्तुति मंत्र :-
ओम नम: श्म्भ्वाय च मयोंभवाय च
नम: शंकराय च मयस्कराय च
नम: शिवाय च शिवतराय च।।
शिव चालीसा :-
।।दोहा।।
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥1॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥2॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥3॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥4॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।
जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥5॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥6॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु अब संकट भारी॥7॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
नारद शारद शीश नवावैं॥8॥
नमो नमो जय नमो शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥9॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥10॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
शिव जी की आरती :-
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण स्वामी जीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
आरती के उपरांत शिव पंचाक्षर स्त्रोत, शिव रुद्राष्टक अथवा शिव तांडव स्त्रोत्र का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होकर अति उत्तम फल प्रदान करते हैं l
॥ श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम् ॥
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय,
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय,
तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥
मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय,
नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय,
तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥
शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द,
सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय,
तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥
वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य,
मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय,
तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय,
पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय,
तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥
पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ll
श्री शिव रूद्राष्टकम :-
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।
शिव तांडव स्तोत्र –
जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥
जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२
कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥